[vc_row][vc_column][vc_column_text]डॉ अंबेडकर जयंती सबसे प्रमुख भारतीय नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं, वकील और राजनीतिज्ञ के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। अंबेडकर जयंती को दुनिया की सबसे बड़ी जयंती माना जाता है। उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को हुआ था। 2015 से इस दिन 25 से अधिक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सार्वजनिक अवकाश रहा है। डॉ. अंबेडकर को भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने और वंचितों और दलितों के समान अधिकारों के लिए लड़ने में उनके योगदान के लिए याद किया जाता है। इस दिन को भीम जयंती या भीमराव अम्बेडकर जयंती भी कहा जाता है। जनार्दन सदाशिव रणपिसे ने पहली बार 1928 में पुणे में भीम जयंती मनाई थी। [/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][vc_column_text]

2023 में डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर जयंती कब है?

हर साल, डॉ अंबेडकर जयंती की तारीख 14 अप्रैल को डॉ बी आर अंबेडकर के जन्मदिन के उपलक्ष्य में पड़ती है। इस दिन 2015 से पूरे देश में राष्ट्रीय अवकाश है। इस साल भीमराव जयंती शुक्रवार को है। इस वर्ष डॉ अंबेडकर जयंती 2023 उनकी 132वीं जयंती है।

डॉ अंबेडकर जयंती का इतिहास और पृष्ठभूमि

बाबासाहेब भीम राव रामजी अम्बेडकर के समाज सुधारक के रूप में भारत में योगदान को याद करने के लिए अम्बेडकर जयंती देश भर में मनाई जाती है। जयंती हर साल 14 अप्रैल को मनाई जाती है। तारीख डॉ बीआर अंबेडकर के जन्मदिन का प्रतीक है। भीम जयंती पहली बार 1928 में पुणे में बीआर अंबेडकर के अनुयायियों में से एक, जनार्दन सदाशिव रणपिसाई द्वारा मनाई गई थी। डॉ. अंबेडकर की तरह, वह भी एक सामाजिक कार्यकर्ता थे।

तब से, इस दिन को डॉ अम्बेडकर जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को 25 भारतीय राज्यों में सार्वजनिक अवकाश के रूप में भी मनाया जाता है। [/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][vc_column_text]

भीमराव आंबेडकर की शिक्षा:

भीमराव आंबेडकर ने मुंबई के एलफिन्स्टन हाई स्कूल से शुरुआती शिक्षा प्राप्त की। इस स्कूल में वह एकमात्र अछूत छात्र थे, जिस कारण से उन्हें काफी परेशानी भी हुई। भीमराव आंबेडकर ने वर्ष 1907 में मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। इसके बाद, उन्होंने एलफिन्स्टन कॉलेज में दाखिला लिया। बाबा साहेब ने वर्ष 1912 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र की पढ़ाई पूरी की।

बाबा साहेब को बड़ौदा (अब वडोदरा) के गायकवाड़ शासक द्वारा छात्रवृत्ति दी गई थी। उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी के विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त की थी। ऐसा माना जाता है कि जब गायकवाड़ शासक के अनुरोध पर बाबा साहेब ने बड़ौदा लोक सेवा में प्रवेश लिया, तो उन्हें उच्च जाति के सहयोगियों द्वारा बुरा व्यवहार किया जाता था।

इसके बाद, बाबा साहेब ने कानूनी अभ्यास और शिक्षण की ओर रुख किया। इसके साथ ही, उन्होंने दलितों के बीच अपना नेतृत्व कायम किया। इसी दौरान, भीमराव आंबेडकर ने कई सारे पत्रिकाओं को शुरू किया। वहीं, उन्होंने सरकार की विधान परिषदों में दलितों के लिए विशेष प्रतिनिधित्व प्राप्त करने के लिए लड़ाई लड़ी और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहे।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][vc_column_text]

भीमराव आंबेडकर ने अपनाया बौद्ध धर्म:

भीमराव आंबेडकर वर्ष 1950 में वह एक बौद्धिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए श्रीलंका गए, जहां वह बौद्ध धर्म से अत्यधिक प्रभावित हुए। स्वदेश वापसी पर उन्होंने बौद्ध धर्म के बारे में पुस्तक लिखी। उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। वर्ष 1955 में उन्होंने भारतीय बौद्ध महासभा की स्थापना की। 14 अक्टूबर 1956 को उन्होंने एक आम सभा आयोजित की, जिसमें उनके साथ-साथ अन्य पांच लाख समर्थकों ने बौद्ध धर्म अपनाया। कुछ समय बाद छह दिसंबर, 1956 को उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म की रीति-रिवाज के अनुसार किया गया।

बाबासाहेब और संविधान निर्माण:

भीमराव आंबेडकर ने भारत के संविधान का निर्माण किया। उन्होंने संविधान समिति के अध्यक्ष के रूप में काम किया था। संविधान समिति का काम 1946 में शुरू हुआ था और संविधान का निर्माण 26 नवंबर, 1949 को पूरा हुआ था। संविधान भारत की संवैधानिक शासन व्यवस्था है और 26 जनवरी, 1950 को भारत के गणतंत्र की शुरुआत हुई थी।

संविधान के निर्माता, दलितों के मसीहा और मानवाधिकार आंदोलन के प्रकांड विद्वता बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्मदिवस हर साल 14 अप्रैल को मनाया जाता है। डॉ. अंबेडकर की जयंती पर उनके जनकल्याण के लिए किए गए अभूतपूर्व योगदान को याद किया जाता है। बाबा साहेब निचले तबके से तालुक रखते थे। बचपन से ही समाजिक भेदभाव का शिकार हुए। यही वजह थी कि समाज सुधारक बाबा भीमराव अंबेडकर ने जीवन भर कमजोर लोगों के अधिकारों के लिए लंबा संघर्ष किया। महिलाओं को सशक्त बनाया। इस साल बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की 132वीं जयंती मनाई जा रही है।

डॉ अंबेडकर जयंती का इतिहास और पृष्ठभूमि

बाबासाहेब भीम राव रामजी अम्बेडकर के समाज सुधारक के रूप में भारत में योगदान को याद करने के लिए अम्बेडकर जयंती देश भर में मनाई जाती है। जयंती हर साल 14 अप्रैल को मनाई जाती है। तारीख डॉ बीआर अंबेडकर के जन्मदिन का प्रतीक है। भीम जयंती पहली बार 1928 में पुणे में बीआर अंबेडकर के अनुयायियों में से एक, जनार्दन सदाशिव रणपिसाई द्वारा मनाई गई थी। डॉ. अंबेडकर की तरह, वह भी एक सामाजिक कार्यकर्ता थे।

तब से, इस दिन को डॉ अम्बेडकर जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को 25 भारतीय राज्यों में सार्वजनिक अवकाश के रूप में भी मनाया जाता है।
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